कुछ लिख के मिटा दिया
ज़िन्दगी ने मेरी तकदीर से
कुछ मिटा के लिख दिया
फिर से हाथ की लकीरों में
एक कतरा आंसू
था शायद
जो समन्दर बन
बहा आँखों से
मेरे सपनो का एक
सुन्दर जहाँ डूबा जिसमे
पर
मैं न डूबी न ही तर कर
पार हुई जिससे
बस भवन्डर में
टूटी नाव सी
गोते ही खाती रही....
Saturday, December 11, 2010
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