दिल के कसी छेद से
रुक रुक कर रिसती हैं
कुछ बीते पलों की यादें
कुछ वो ज़ख्म
जो वक़्त की मरहम
दे जाती है
कुछ ऐसे भ्रम
जो हमारी उमीदे
हम में भर जाती है.
भूल जाना चाहते है.
जिन्हें हम सदियों पहले
पर कम्भख्त भुलाये नहीं भूलते.
सच है अंधेरो में बुने ख्वाब
दिनों में नहीं पलते
बिखर जाते हैं
टूटे कांच की तरह
और बार बार लौटकर
आँखों में चुभ जाते हैं
Saturday, December 11, 2010
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