Thursday, December 4, 2008

एक माँ की पुकार

मौत बेच कर
ज़िन्दगी खरीदने वाले
ऐ बेगैरत सौदागर सुन
मरने वाला
न हिन्दू था
न मुस्लमान
न सिख
न इसाई
वो तो बेचारा एक बेगुनाह इन्सान था
…जिसे किसी की कोख ने नौ महीने पाला था
अपने खून से जिसका बचप्पन सींचा था
तेरी बेरहम गोली कि वार से
उस माँ का बुढापा आज अनाथ हुआ है …
मंदिर देख
मस्जिद देख
देख ले गुरद्वारे
और चर्च जाकर
हर माँ कि सीने से बस एक दुआ आज उठी है
मेरे बच्चे को उम्र दराज़ करना
पुकार येही हर द्वार लगी है
गौर से देख
तेरी लिए भी कहीं दो हाथदुआ के लिए उठे हैं
तेरे लिए भी मांग रहे यही
।इश्वर करे
या करे खुदा
तेरी माँ का बुढापा सनाथ रहे
तू जिंदा रहे
॥बस तेरे अन्दर की नफरत मरे
…बस तेरे अन्दर की नफरत मरे
…।यदि मजबूर है खुदा भी तेरी बन्दूक के सामने
तो ये माँ यही मांगेगी
॥बच्चे से पहले तेरी गोली उसे छलनी करे