Saturday, December 11, 2010

नाउम्मीदी

दिल के बयाबनो

तहखानो में

बेड़ियों से बाँध रखा था

जिन नाउम्मीदों को

न जाने किस छेद से

उम्मीद की किरण

उन तक पहुँच गयी

के मेरी नाउम्मीदी

फिर से गहरी नींद

से जग कर मेरे

सामने आ खडी हो गयी...


रुक जा वक़्त फिर से

मुड़ जा और ले चल

मुझे फिर उन्ही

बयाबानो में

जहाँ से ये लौटके आई हैं

और मेरा आत्मविश्वास

डगमगाई हैं

चल कर इन्हें

फिर वहीँ क़ैद कर आयें

और उस छेद में

भर माटी उसे भी बंद कर आये

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