Saturday, December 11, 2010

वोह लम्हे

उम्र की कैद में दफ़न

रखी एक मेज है

जिसकी दराजो

में छुपी

कुछ यादे है

ये दिल आज

फिर से उन दराजो

को खोलने की जिद्द कर बैठा

यादो की दरारों से

झांक कर

फिर से जीने की उम्मीद कर बैठा..


कंप-कांपते हुए हाथों से

दिल में दहकते शोलो से

मन के उन पुराने साजों से

थोड़ी हिम्मत मैंने जुटाई है ..

उन यादों से फिर आखें भर आई हैं ..

उस मेज की दराजो में

वोह लम्हे आज भी वैसे ही रखे हैं ...

कुछ मीठे कुछ नमकीन ,

कुछ ग़मगीन , कुछ रंगीन ...

वोह पल

मैंने आज फिर जी के देखे हैं .......

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