उम्र की कैद में दफ़न
रखी एक मेज है
जिसकी दराजो
में छुपी
कुछ यादे है
ये दिल आज
फिर से उन दराजो
को खोलने की जिद्द कर बैठा
यादो की दरारों से
झांक कर
फिर से जीने की उम्मीद कर बैठा..
कंप-कांपते हुए हाथों से
दिल में दहकते शोलो से
मन के उन पुराने साजों से
थोड़ी हिम्मत मैंने जुटाई है ..
उन यादों से फिर आखें भर आई हैं ..
उस मेज की दराजो में
वोह लम्हे आज भी वैसे ही रखे हैं ...
कुछ मीठे कुछ नमकीन ,
कुछ ग़मगीन , कुछ रंगीन ...
वोह पल
मैंने आज फिर जी के देखे हैं .......
Saturday, December 11, 2010
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