सर्दियों की नर्म धूप अभी
पक के जमी नहीं
और तू है के
अभी से अलावे
लगा के बैठी है
दुनिया समझती है
तुझसे बदलते
मौसम का मिजाज़
सहन नहीं होता शायद
पर हम जानते हैं
तू इस अलावे की आग में
अपने जीवन के राग को
जलाकर खाक करना चाहती है
और अपने अश्को को
आग की दें समझकर
खुद को भी छलना चाहती है
Saturday, December 11, 2010
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