कतरने ज़िन्दगी की
जमा करके बैठे हैं
कभी सिल लेते हैं
साँसों की तार से
कभी जोड़ लेते हैं
आंसूओ की धार से
पार कर लेते हैं
हर मंजिल कभी जीत के
कभी हार की मार से
न रुके थे
न रुकेंगे ये कदम
एक बार और चल पड़े
फिर से हम तलवार की धार पे
Saturday, December 11, 2010
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