Saturday, December 11, 2010

कतरने ज़िन्दगी

कतरने ज़िन्दगी की

जमा करके बैठे हैं

कभी सिल लेते हैं

साँसों की तार से

कभी जोड़ लेते हैं

आंसूओ की धार से

पार कर लेते हैं

हर मंजिल कभी जीत के

कभी हार की मार से

न रुके थे

न रुकेंगे ये कदम

एक बार और चल पड़े

फिर से हम तलवार की धार पे

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