Tuesday, December 27, 2011

meri chhoti kavitaye

1.
कुछ ख्वाब देख कर

हैरान थी ऑंखें उनकी

शायद सपने में
कोई आके उन्हें
आइना दिखा गया..


2.
कुछ गीले सपने

टूटे से बिखरे थे

उसके आंगन में

शायद सूखी आँखों में

कुछ आंसू और बचे थे. ...............

3.
ऐ दिल कहा था

न रोना इतना

ये जमीन गीली न करना

देख..

कितने सपने फिसल के गिरे है यहाँ.

4.
वो देखो दूर खडी मौत
मुझे देख कहकहे लगा रही
और अपनी ठिठोली भरे
अंदाज़ में पूछ रही

इन्सान बनके जन्मे हो....
इन्सान बन कर मर भी पाओगे......?????????????

5.
चुप रह कर भी कह जाती हैं

बातें कई हमारी ऑंखें

इसलिए हम

आजकल पलके मूंदे रहते हैं..

6.
बहुत तंग हैं दिल की वो गलियां

जिनसे होकर मेरी साँसे गुज़रती हैं

तुम अपने यादो की तस्वीर

कहीं और जाकर लगा दो

Friday, October 7, 2011

पहचान

दिल के अरमानो को सीने से बाहर निकालो

शहर कि गलिया तंग हैं...

इन्हें खुली हवा थोड़ी खिला दो


लाख जफ्फा करे दुनिया तो क्या

रंझो ग़म को तुम अपना गुलाम बना दो

मुस्कराने कि सजा हर पल मिलेगी

मगर फिर भी तुम उसे अपना ईमान बना दो

बदल दो मायने खुदाई के अपने वास्ते

बस खुद से एक बार अपनी पहचान बना दो

Thursday, March 24, 2011

बूढ़े बरगद

सदियों की उम्र लिए
बरगद के कुछ पेड़
वहीँ खड़े हैं
जहाँ
दुरी मिटाने मेरे शहर में
एक पुल बन रहा

धीरे धीरे एक आड़ी
चल रही उनके सीनों पर
और एक एक कर
वो तरक्की की बलि चढ़ रहे

शायद....
खुद को काट कर
नयी पीढी के लिए
रास्ता बनाना
हर पुराने
बरगद के नसीब है...

पुल तो बना था दुरी मिटाने
पर ये बुजर्ग बरगद अब
न मिलेंगे अपनी छाँव
नयी पीड़ी के पथिको को देने

शायद हर बुजर्ग बरगद
का नसीब फ़ैल कर कटना
होता होगा...
ये हमने भी आज जाना है....

Monday, March 21, 2011

तू तू मैं मैं

दो लफ्ज़ तेरे होंगे
दो मेरे
तीर बन दोनों के सीने छलनी होंगे

कुछ लहू तेरा बहेगा
बहुत कुछ मेरा
घायल दोनों होंगे

तुझे घायल देख सकूँ

ऐसी मुझ में ताकत नहीं


इसलिए तेरे तीर चुप चाप

सीने पर ले कर छलनी

कर दिया खुद को

न आने दी एक उफ़ होठो पर

या एक आंसू आँखों में


अनजान नहीं हम भी तेरी फितरत से

आज में ज़ख़्मी हूँ जो जिस्म से

कल तेरी रूह ज़ख़्मी होगी

और मेरे आँखों के समंदर

तेरी ही आँखों से बहेंगे


तब इन्ही तीरों से

सीने को और कुरेद कर

हम उन नमकीन मोतियों को

अपने सीने में पनाह देंगे...

Wednesday, March 9, 2011

कुछ क्षणिकाए

हाथो की लकीरों में लिखा एक नाम
आज हम मिटाना चाहते हैं
तुझे तेरी तकदीर को वापस लौटाना चाहते हैं
मिले तुझे मंजिल या नहीं..
हम तो बस तुझे साहिल पर लाना चाहते हैं...


2.
जाओ खंजर एक और ले आओ..
दिल के ज़ख्म अब मरहम से भरते नहीं


जाओ कोई पतझड़ ले आओ..
ज़िन्दगी अब बहारो से बहलती नहीं

3.
सुकून को चलो अब आराम थोडा दिया जाये
ज़िन्दगी से अब दो दो हाथ हो जाये...
4.
चुप रह कर भी कह जाती हैं
बातें कई हमारी ऑंखें
इसलिए हम
आजकल पलके मूंदे रहते हैं...

5.

बहुत तंग हैं दिल की वो गलियां
जिनसे होकर मेरी साँसे गुज़रती हैं
तुम अपने यादो की तस्वीर
कहीं और जाकर लगा दो