वो चुप ही रही..
मैंने पुछा हाथ और पैरो से चलोगे कब तक
वो बोले ज़िन्दगी है तब तक
मैंने पुछा ज़िन्दगी से जियोगी कब तक
वो बोली दिल धड्केगा तब तक
मैंने पुछा धडकनों से धर्कोगी कब तक
वो बोली सांसे चलेंगी तब तक
मैंने पुछा सांसो से चलोगी कब तक
वो बोली तेरा मन भटकेगा तब tak
मैंने पुछा मन से भटकोगे कब तक
वो बोला अरमा मचलेंगे तब तक
मैंने पुछा अरमानो से कब तक मचलोगे
वो बोले आत्मा चुप है तब तक
मैंने पुछा आत्मा से
चुप रहोगी कब तक
वो कुछ न बोली...
चुप ही रही...
Friday, May 28, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment