मौत बेच कर
ज़िन्दगी खरीदने वाले
ऐ बेगैरत सौदागर सुन
मरने वाला
न हिन्दू था
न मुस्लमान
न सिख
न इसाई
वो तो बेचारा एक बेगुनाह इन्सान था
…जिसे किसी की कोख ने नौ महीने पाला था
अपने खून से जिसका बचप्पन सींचा था
तेरी बेरहम गोली कि वार से
उस माँ का बुढापा आज अनाथ हुआ है …
मंदिर देख
मस्जिद देख
देख ले गुरद्वारे
और चर्च जाकर
हर माँ कि सीने से बस एक दुआ आज उठी है
मेरे बच्चे को उम्र दराज़ करना
पुकार येही हर द्वार लगी है
गौर से देख
तेरी लिए भी कहीं दो हाथदुआ के लिए उठे हैं
तेरे लिए भी मांग रहे यही
।इश्वर करे
या करे खुदा
तेरी माँ का बुढापा सनाथ रहे
तू जिंदा रहे
॥बस तेरे अन्दर की नफरत मरे
…बस तेरे अन्दर की नफरत मरे
…।यदि मजबूर है खुदा भी तेरी बन्दूक के सामने
तो ये माँ यही मांगेगी
॥बच्चे से पहले तेरी गोली उसे छलनी करे
Thursday, December 4, 2008
Friday, November 28, 2008
वो अनाथ आँखें
रात के अंधेरों
में उज्जालो के ख्वाब बुनती हैं
अमावास कि स्याही में
दीवाली ढूंढती हैं
..........ना चीनी है
ना आटा है
ना ही घी है कहीं
खाली पड़े मर्तबानो मेंहलवे पूरी का स्वाद ढूंढती हैं
........ना बाप है
ना भाई है
ना ही कोई दोस्त
दिलों को मीठी बातों से छूकर
परायों में अपनों का अहसास ढूंढती हें
ग़मों सी पतझड़ ज़िन्दगी से
यह नादाँ
रौशनी से अनाथ आंखें
हर पल खुशियों की बगिया ढूढती हैं...
में उज्जालो के ख्वाब बुनती हैं
अमावास कि स्याही में
दीवाली ढूंढती हैं
..........ना चीनी है
ना आटा है
ना ही घी है कहीं
खाली पड़े मर्तबानो मेंहलवे पूरी का स्वाद ढूंढती हैं
........ना बाप है
ना भाई है
ना ही कोई दोस्त
दिलों को मीठी बातों से छूकर
परायों में अपनों का अहसास ढूंढती हें
ग़मों सी पतझड़ ज़िन्दगी से
यह नादाँ
रौशनी से अनाथ आंखें
हर पल खुशियों की बगिया ढूढती हैं...
Tuesday, September 9, 2008
राहे रेगिस्तान पे
कारवां का अकेला राही
बढ़ता चला राहे रेगिस्तान पे
नक्शे कदम मेरे लिए कोई नही
राहे रेगिस्तान पे..........
अपनी राह ख़ुद बनता चला राहे रेगिस्तान पे
थक चला सूरज भी..ढल कर अपने
बिस्तर में सो गया....
मअं न थका...ख़ुद को जलाकर रौशनी की
राआहे रेगिस्तान पे
चाँद भी करके अमावस का बहाना
छुप गया ..तारे भी थक कर पडाव में बैठे रहे
मैं न रुका ......चलता चला
राहे रेगिस्तान में
ये आंधी , ये रेत के तूफ़ान
तोड़ पहाड़ चले जहाँ
मैं न टूटा वहां
राहे रेगिस्तान
की राही ठोस मंजिल का हु
रेत का ज़र्रा नही उड़ा लिया जाऊं
ये विश्वास ख़ुद को हर पल दिलाता चला
राहे रेगिस्तान पे.............
बढ़ता चला राहे रेगिस्तान पे
नक्शे कदम मेरे लिए कोई नही
राहे रेगिस्तान पे..........
अपनी राह ख़ुद बनता चला राहे रेगिस्तान पे
थक चला सूरज भी..ढल कर अपने
बिस्तर में सो गया....
मअं न थका...ख़ुद को जलाकर रौशनी की
राआहे रेगिस्तान पे
चाँद भी करके अमावस का बहाना
छुप गया ..तारे भी थक कर पडाव में बैठे रहे
मैं न रुका ......चलता चला
राहे रेगिस्तान में
ये आंधी , ये रेत के तूफ़ान
तोड़ पहाड़ चले जहाँ
मैं न टूटा वहां
राहे रेगिस्तान
की राही ठोस मंजिल का हु
रेत का ज़र्रा नही उड़ा लिया जाऊं
ये विश्वास ख़ुद को हर पल दिलाता चला
राहे रेगिस्तान पे.............
Tuesday, August 26, 2008
अपनी स्मित बनाये रखना
दिल की ज़मीन पर
जब जब भी अहसासों के ज़लज़ले आते हैं
आंसुओं के समुन्द्र में एक सुनामी सी लाते हैं
तब
हर लहर उछालने लगती है
आँखों के किनारे तोड़ बहने लगती है
और
राह में आती हर मुस्कान तबाह कर देती है ……
इन अहसासों के ज़लज़ले से बचना
किसी के लिए अपनी मुस्कान तबाह न करना
माना
… उसकी की याद में …
ज़िन्दगी दोज़ख बन जायेगी …
।तुम बस अपनी लाश के हाथ में
उम्मीद के झंडे संभाले रखना …
॥जबरन ही सही …
होठों की स्मित बचाए रखना ......
जब जब भी अहसासों के ज़लज़ले आते हैं
आंसुओं के समुन्द्र में एक सुनामी सी लाते हैं
तब
हर लहर उछालने लगती है
आँखों के किनारे तोड़ बहने लगती है
और
राह में आती हर मुस्कान तबाह कर देती है ……
इन अहसासों के ज़लज़ले से बचना
किसी के लिए अपनी मुस्कान तबाह न करना
माना
… उसकी की याद में …
ज़िन्दगी दोज़ख बन जायेगी …
।तुम बस अपनी लाश के हाथ में
उम्मीद के झंडे संभाले रखना …
॥जबरन ही सही …
होठों की स्मित बचाए रखना ......
Saturday, July 19, 2008
ये कैसी मजबूरी
बंजर दिलों की ज़मीन
बीज ज़िन्दगी के सूखे
चुलू भर लहू सीने में
लाखों साँसों के कैसे सींचू????
हर दिल में आग नफरत की
हर घर में हिंसा की होली
दो नन्हे नयनो के नीर से
यह दहकते शोले कैसे भुजाऊँ????
प्रेम की हर माला टूटी है
मोती बिखरे हैं
कब्रस्तानो और शमशानों में
जो जोड़ सके फिर से ताने बाने
वो धागे प्रेम के कहाँ से लाऊ ????
पत्थर ही पत्थर फैले है
जीवन के हर एक कोने में
एक अकेली ……चेतना..
किस किस में जान डालू?????????
बीज ज़िन्दगी के सूखे
चुलू भर लहू सीने में
लाखों साँसों के कैसे सींचू????
हर दिल में आग नफरत की
हर घर में हिंसा की होली
दो नन्हे नयनो के नीर से
यह दहकते शोले कैसे भुजाऊँ????
प्रेम की हर माला टूटी है
मोती बिखरे हैं
कब्रस्तानो और शमशानों में
जो जोड़ सके फिर से ताने बाने
वो धागे प्रेम के कहाँ से लाऊ ????
पत्थर ही पत्थर फैले है
जीवन के हर एक कोने में
एक अकेली ……चेतना..
किस किस में जान डालू?????????
Thursday, July 10, 2008
मेरी वसीयत …
जब तुम मेरा ये काव्य पढोगे
तुम्हें कहीं विरह के
तो कहीं मिलन पल मिलेंगे
कहीं निराशा
तो कहीं आशा के कल मिलेंगे
आंसू की नदियाँ
कहीं तो ख़ुशी के समुन्दर मिलेंगे
बचप्पन की मासूमी
तो कहीं जवानी की नादानी
और
कहीं ढलती उम्र के सयानेपन मिलेंगे
ज़िन्दगी की पल पल से लडाई
तो कहीं उस -से किये बेमन समझौते मिलेंगे
कहीं शक की आंधी तो
कहीं चातक सा विश्वास मिलेगा
बस यूँ समझ लो
मेरे इन्द्रधनुषी जीवन का
’हर रंग इन पन्नो में मिलेगा
और
अंत में शायद कुछ पन्ने कोरे भी मिलेंगे
तब यह समझ लेना
इस कलम की स्याही सुख चली
तब तुम उन खाली पन्नो में
अपनी कलम से कुछ रंग भर देना
यूँ तो मेरा सारा काव्य तुम्हारे नाम है
बस ये कुछ पन्ने नाम मेरे कर देना …
तुम्हें कहीं विरह के
तो कहीं मिलन पल मिलेंगे
कहीं निराशा
तो कहीं आशा के कल मिलेंगे
आंसू की नदियाँ
कहीं तो ख़ुशी के समुन्दर मिलेंगे
बचप्पन की मासूमी
तो कहीं जवानी की नादानी
और
कहीं ढलती उम्र के सयानेपन मिलेंगे
ज़िन्दगी की पल पल से लडाई
तो कहीं उस -से किये बेमन समझौते मिलेंगे
कहीं शक की आंधी तो
कहीं चातक सा विश्वास मिलेगा
बस यूँ समझ लो
मेरे इन्द्रधनुषी जीवन का
’हर रंग इन पन्नो में मिलेगा
और
अंत में शायद कुछ पन्ने कोरे भी मिलेंगे
तब यह समझ लेना
इस कलम की स्याही सुख चली
तब तुम उन खाली पन्नो में
अपनी कलम से कुछ रंग भर देना
यूँ तो मेरा सारा काव्य तुम्हारे नाम है
बस ये कुछ पन्ने नाम मेरे कर देना …
दो किनारे
इक छोर मैं
इक छोर किस्मत
मेरी बीच हमारे सदियों का फासला
बस एक दूजे का अहसास रखते हैं
ना वो मेरे पास आ सकती
ना में उस तक जा सकती
बस यूँही दूर से इक दूजे को ताका करते हैं
लाख कोशिश की
हमने उस ओर जाने की
लाख कोशिश की उसने इस ओर आने की …
अब जाके सफल दोनों हुए
अब उस छोर मैं
और
इस छोर किस्मत मेरी
और हमारे बीच वही सदियों का फासला …..
इक छोर किस्मत
मेरी बीच हमारे सदियों का फासला
बस एक दूजे का अहसास रखते हैं
ना वो मेरे पास आ सकती
ना में उस तक जा सकती
बस यूँही दूर से इक दूजे को ताका करते हैं
लाख कोशिश की
हमने उस ओर जाने की
लाख कोशिश की उसने इस ओर आने की …
अब जाके सफल दोनों हुए
अब उस छोर मैं
और
इस छोर किस्मत मेरी
और हमारे बीच वही सदियों का फासला …..
चलो अब हम भी बतियाते हैं
बड़ी चतुर हमारी सरकार
करती हमेशा नए कमाल
कैसे ??????????
हम आपको बताते हैं ..
एक हफ्ते के राशन में
ही जेब होती अब पूरी तरह कंगाल ….
महीने के मध्य मैं
रसोई में डब्बे खलीबर्नियाँ पड़ी तंग-हाल
शुक्र है .
.मोबाइल का बैलेंस बाकी है
sarkari वादों से तो ऊब चुके
अब हम भी बातों से पेट भरते हैं
इसी बहाने ……………
अपने दांतों और आंतो को कुछ आराम भी दे देते हैं
..और अबसे जुबान से कम लेते हैं
नानी -दादी , चाची- मामी , बुआ -मौसी
सभी से जी भर ..ना ना पेट भर बतियाते हैं ….
चिदंबरमजी …
मुंह को खाना और बोलना
बस दो काम ही आते हैं
ये आप ही नहीं हम भी खूब जानते हैं ….
Kutumbhwalo
कितनी चतुर हमारी सरकार
रोटी -दाल से सस्ती कर दी STD.... काल
करती हमेशा नए कमाल
कैसे ??????????
हम आपको बताते हैं ..
एक हफ्ते के राशन में
ही जेब होती अब पूरी तरह कंगाल ….
महीने के मध्य मैं
रसोई में डब्बे खलीबर्नियाँ पड़ी तंग-हाल
शुक्र है .
.मोबाइल का बैलेंस बाकी है
sarkari वादों से तो ऊब चुके
अब हम भी बातों से पेट भरते हैं
इसी बहाने ……………
अपने दांतों और आंतो को कुछ आराम भी दे देते हैं
..और अबसे जुबान से कम लेते हैं
नानी -दादी , चाची- मामी , बुआ -मौसी
सभी से जी भर ..ना ना पेट भर बतियाते हैं ….
चिदंबरमजी …
मुंह को खाना और बोलना
बस दो काम ही आते हैं
ये आप ही नहीं हम भी खूब जानते हैं ….
Kutumbhwalo
कितनी चतुर हमारी सरकार
रोटी -दाल से सस्ती कर दी STD.... काल
Tuesday, July 8, 2008
टूटी ग़ज़ल.....
बड़े नाजों से पाला था
शीशे सा संभाला था
जिसे वो ग़ज़ल ……………….
.कल मेरे हाथों से छुट गयी
और हजारों टुकडों में टूट गयी
अब हर तरफ मेरे बस लफ्ज़ ही लफ्ज़ बिखरे हैं …..
जो कभी मुझे सुकून देते थे
आज वो टूटे कांच से चुभते हैं …..
ऐ ग़ज़लों वाली लड़की सुन
थोडी आंच देकर
इन कांच के लफ्जों को पिघला दो
और
तुम ग़ज़लों वाले लड़के (खुदा )
इन पिघले लफ्जों को
नए सांचे में डाल
मेरी टूटी ग़ज़ल को नया रूप दे दो ….
शीशे सा संभाला था
जिसे वो ग़ज़ल ……………….
.कल मेरे हाथों से छुट गयी
और हजारों टुकडों में टूट गयी
अब हर तरफ मेरे बस लफ्ज़ ही लफ्ज़ बिखरे हैं …..
जो कभी मुझे सुकून देते थे
आज वो टूटे कांच से चुभते हैं …..
ऐ ग़ज़लों वाली लड़की सुन
थोडी आंच देकर
इन कांच के लफ्जों को पिघला दो
और
तुम ग़ज़लों वाले लड़के (खुदा )
इन पिघले लफ्जों को
नए सांचे में डाल
मेरी टूटी ग़ज़ल को नया रूप दे दो ….
Wednesday, June 25, 2008
गरूर एक यह भी
रात भर चाँद पिघलता रहा
हम बूँद बूँद चान्दिनी
अपने चांदी की परात में
इकठा करते रहे
अपनी सर्द आहों की देकर हवा
उसे परत भर परत जमाते रहे
जब चाँद पूरी तरह जम गया
तब फिर से उसे
….अपने प्यार के धागों
से खेंच कर फलक पर लटकाया
और घूरते रहे …अपनी कोशिश पे गरूर खाते रहे
हम बूँद बूँद चान्दिनी
अपने चांदी की परात में
इकठा करते रहे
अपनी सर्द आहों की देकर हवा
उसे परत भर परत जमाते रहे
जब चाँद पूरी तरह जम गया
तब फिर से उसे
….अपने प्यार के धागों
से खेंच कर फलक पर लटकाया
और घूरते रहे …अपनी कोशिश पे गरूर खाते रहे
Wednesday, June 4, 2008
यादों के हीरे
कभी था जो महल
मेरा वो आलीशान दिल
अब खंडहर बन चुका
प्यार के पन्ने
मोहब्बत के मोती
जिसे जो मिला लूट चुका ….
बस तेरी याद के कुछ हीरे
बचे है
जो एक तहखाने में
बड़ी हिफाज्जत से
सम्भाल्के हमने रखे हैं ….
वादा है ये तुमसे
इन्हें लुटने न देंगे…...
दीवारें डेह भी जाये तो क्या
इस दिल के दरवाज़े
अब किसी के लिए न खुलेंगे …………
मेरा वो आलीशान दिल
अब खंडहर बन चुका
प्यार के पन्ने
मोहब्बत के मोती
जिसे जो मिला लूट चुका ….
बस तेरी याद के कुछ हीरे
बचे है
जो एक तहखाने में
बड़ी हिफाज्जत से
सम्भाल्के हमने रखे हैं ….
वादा है ये तुमसे
इन्हें लुटने न देंगे…...
दीवारें डेह भी जाये तो क्या
इस दिल के दरवाज़े
अब किसी के लिए न खुलेंगे …………
Monday, May 26, 2008
निमंत्रण
माननीय श्री मनमोहनजी
माननीय श्री चिद्म्बर्मजी
लेफ्ट के कमजोर सहारे पे टिक्की
यूँ ही आपकी सरकार बेहाल है
उस पे असमान छूती महंगाई
ने किया इसका और बुरा हाल है
इससे से पहले की अगले चुनाव में
आपकी ये बीमार सरकार परलोक सिधारे
मेरे घर एक बार आप अवश्य पधारे …
वैसे तो मै एक साधारण सी
मध्यम वर्गीय गृहणी हूँ
जो सादी दाल-रोटी सपरिवार खाती हूँ
वही आपको भी खिलाऊंगी
आकार मेरा आतिथ्य स्वीकारें
अब आगे मेरे निमंत्रण का
असल मकसद भी बांचे
“इस कमरतोड़ महंगाई
मेंजहाँ दाल -रोटी भी
बड़ी मुश्किल से जुटा पाते है,
बच्चे हैं की
अपने नए सपने नए अरमानों की
रोज एक फेहरिस्त लगाते है.”
“मेरा छोटा बेटा बिन कोटे का होकर
भी पोस्ट -ग्राजुअशन करना चाहता है,
उसकी महंगी फीस के
लिए अपनी दाल को काटू????
या रोटी को ग्रहण लगाऊ ????”“
उस पर बड़ा बेटा ..
अपनी एकलौती प्रेयसी को
छोटे मोटे तोहफे देकर खुश रखना चाहता है
इस विशेष खर्च का गणित
अपनी लड़खाद्ती बजट में कहाँ बिठाऊँ ?”
हे देश के करता -धरता
हे अंको , वित और गणित के
महानुभावो शायद मेरे ही सवालों में
आपको फिर से सरकार बनाने के पक्के कोई हल मिल जाये ....
.इसलिए कृपया यह निमंत्रण
ख़त नहीं तार समझकर स्वीकारें ….
और लालूजी की अगली गाड़ी पकड़ कर
मेरे घर अवश्य पधारे ...
माननीय श्री चिद्म्बर्मजी
लेफ्ट के कमजोर सहारे पे टिक्की
यूँ ही आपकी सरकार बेहाल है
उस पे असमान छूती महंगाई
ने किया इसका और बुरा हाल है
इससे से पहले की अगले चुनाव में
आपकी ये बीमार सरकार परलोक सिधारे
मेरे घर एक बार आप अवश्य पधारे …
वैसे तो मै एक साधारण सी
मध्यम वर्गीय गृहणी हूँ
जो सादी दाल-रोटी सपरिवार खाती हूँ
वही आपको भी खिलाऊंगी
आकार मेरा आतिथ्य स्वीकारें
अब आगे मेरे निमंत्रण का
असल मकसद भी बांचे
“इस कमरतोड़ महंगाई
मेंजहाँ दाल -रोटी भी
बड़ी मुश्किल से जुटा पाते है,
बच्चे हैं की
अपने नए सपने नए अरमानों की
रोज एक फेहरिस्त लगाते है.”
“मेरा छोटा बेटा बिन कोटे का होकर
भी पोस्ट -ग्राजुअशन करना चाहता है,
उसकी महंगी फीस के
लिए अपनी दाल को काटू????
या रोटी को ग्रहण लगाऊ ????”“
उस पर बड़ा बेटा ..
अपनी एकलौती प्रेयसी को
छोटे मोटे तोहफे देकर खुश रखना चाहता है
इस विशेष खर्च का गणित
अपनी लड़खाद्ती बजट में कहाँ बिठाऊँ ?”
हे देश के करता -धरता
हे अंको , वित और गणित के
महानुभावो शायद मेरे ही सवालों में
आपको फिर से सरकार बनाने के पक्के कोई हल मिल जाये ....
.इसलिए कृपया यह निमंत्रण
ख़त नहीं तार समझकर स्वीकारें ….
और लालूजी की अगली गाड़ी पकड़ कर
मेरे घर अवश्य पधारे ...
Saturday, May 10, 2008
आज तुझे मैं बेच आया माँ....
हर रोज़ अपने दिल के चूल्हे
सुबह सुबह उठ कर
को खूब लीपता हूँ
फिर उसमे अपने
अरमानोंके कोयले जलाता हूँ
और घर के बच्चे खुछे
मिटटी के बर्तनों कोउन पर रख कर
रात भर जो भीने हैं
उन सपनो के दानो की
खिचडी उनमे पकाता हूँ
उस में सरकारी वादों का नमक
और
नेताई इरादों की मिर्च डालकर
ख्चिडी में कुछस्वाद ले की कोशिश करता हूँ
और इसे संतावना के
घी के साथ परोस कर सपरिवार खाता हूँ
कहने को तो मैं भी एक अन्नदाता हूँ
पर आजकल येही खाता हूँ
सोचता हूँ कभी की ख्याली पुलाव भी पका लू
और बच्चों को उनका भी स्वाद चखाऊ
पर बड़ी सूखि हैं अब हमारी आंते
इसे हजम न कर पाई तो ??????????
इसलिए खिचडी से ही कम चलाता हूँ
हाथी को मन और चींटी को कणदेने वाले
विधाता की कतार में भी
मैं सदा अन्तिम क्रम पे ही आता हूँ
.इसलिए हर रात sahkutumbh भूखा ही सोता हूँ
भूमिपुत्र होना मेरे लिए गर्व की बात है
पर गर्व से बच्चों का पेट नहीं भरता माँ
इसलिए आज में तेरा सौदा कर आया हूँ
तुझे एक माल बनाने वाले के पास बेच आया हूँ
मजबूर हूँ...माफ़ करना माँ
मैं भी अपने भूखे नंगे बच्चों को
दो वक़्त की रोटी देना चाहता हूँ...
सुबह सुबह उठ कर
को खूब लीपता हूँ
फिर उसमे अपने
अरमानोंके कोयले जलाता हूँ
और घर के बच्चे खुछे
मिटटी के बर्तनों कोउन पर रख कर
रात भर जो भीने हैं
उन सपनो के दानो की
खिचडी उनमे पकाता हूँ
उस में सरकारी वादों का नमक
और
नेताई इरादों की मिर्च डालकर
ख्चिडी में कुछस्वाद ले की कोशिश करता हूँ
और इसे संतावना के
घी के साथ परोस कर सपरिवार खाता हूँ
कहने को तो मैं भी एक अन्नदाता हूँ
पर आजकल येही खाता हूँ
सोचता हूँ कभी की ख्याली पुलाव भी पका लू
और बच्चों को उनका भी स्वाद चखाऊ
पर बड़ी सूखि हैं अब हमारी आंते
इसे हजम न कर पाई तो ??????????
इसलिए खिचडी से ही कम चलाता हूँ
हाथी को मन और चींटी को कणदेने वाले
विधाता की कतार में भी
मैं सदा अन्तिम क्रम पे ही आता हूँ
.इसलिए हर रात sahkutumbh भूखा ही सोता हूँ
भूमिपुत्र होना मेरे लिए गर्व की बात है
पर गर्व से बच्चों का पेट नहीं भरता माँ
इसलिए आज में तेरा सौदा कर आया हूँ
तुझे एक माल बनाने वाले के पास बेच आया हूँ
मजबूर हूँ...माफ़ करना माँ
मैं भी अपने भूखे नंगे बच्चों को
दो वक़्त की रोटी देना चाहता हूँ...
Thursday, May 8, 2008
खुदा- हाफिज़
यूँ तो आगे बढ़ कर लौटना
मेरी आदत नहीं
शायद तेरी भी नहीं
पर किसी जन्नत -नशीं की
खवाइश थी
और यह खुदा की भी मर्जी थी
फिर तेरे मेरे पवित्र -पुनीत -पाक
रिश्ते पर ग़लतफहमी का जो
भद्दा सा दाग था
उसका धुलना भी ज़रूरी था
इस दाग पे हमने
अपने दिल की दुआओं का
खूब साबुन घिस्सा है
फिर अपने गरम आँसूओ में
इसे खूब खंगोला है
और आखिर में इसे अपने
प्यार के कलफ में घोला है
मेरे यहाँ तो
सूरज ढलान पे है
पर तेरे आंगन की
धूप अब भी बड़ी तेज़ है
इसलिए
इसे वहीं सुखाने छोडा है
बस
एक गुजारिश है
जब ये रिश्ता पूरी तरह सूख जाये
तो इसे उठा लेना
और अच्छी सी तहें लगा कर
अपने दिल की अलमारी के
किसी अंधे कोने में
इसे रख देना
और हो सके तो
इसे चमचमाते
नए रिश्तों से ढँक देना ………..
खुदा-हाफिज़.
मेरी आदत नहीं
शायद तेरी भी नहीं
पर किसी जन्नत -नशीं की
खवाइश थी
और यह खुदा की भी मर्जी थी
फिर तेरे मेरे पवित्र -पुनीत -पाक
रिश्ते पर ग़लतफहमी का जो
भद्दा सा दाग था
उसका धुलना भी ज़रूरी था
इस दाग पे हमने
अपने दिल की दुआओं का
खूब साबुन घिस्सा है
फिर अपने गरम आँसूओ में
इसे खूब खंगोला है
और आखिर में इसे अपने
प्यार के कलफ में घोला है
मेरे यहाँ तो
सूरज ढलान पे है
पर तेरे आंगन की
धूप अब भी बड़ी तेज़ है
इसलिए
इसे वहीं सुखाने छोडा है
बस
एक गुजारिश है
जब ये रिश्ता पूरी तरह सूख जाये
तो इसे उठा लेना
और अच्छी सी तहें लगा कर
अपने दिल की अलमारी के
किसी अंधे कोने में
इसे रख देना
और हो सके तो
इसे चमचमाते
नए रिश्तों से ढँक देना ………..
खुदा-हाफिज़.
mera bachppan laut aya...
Mere mohalle mein
Khushiyon ka ana
Fir se shuru ho chukka hai
Yun to yahan
Garmi badi hai
Sharbaton ke dariya..
Behna shuru ho chukka hai
Kai dino se suna suna tha
Jo Mera angan…
Ab chachahane laga hai
Dhool padi thi jin khilono pe
Who bhi ab chamakne lagay hai
Koi roothne me
To koi manane me lagga hai
Kabhi koi ankh pe bandhe patti
To koi bichata shatranj ki bisat
Aur kahin lagi hai sanp aur seedhi
Kahin par kanche bikhare hai
To kahin gilli dande…
Gend kahin aur balla kahin…
Jo khud abhi gudiyan hai
Rachane challi gudde-guddi ki shadi
Gudiya ki maiya kab se…..
dahej sajane me laggi hai
Aur haye re gudde ke amma…
Bas munh fulane me
Aur bechare nanhe barati
bar bar sar se bhari apni
pagdi sambhlne me lagay hai
umr se pehle jo badha tha
meri ore budhapa
in nanhe farishton ko dekh….
ab apna saman bandhne lagga hai
dheere dheere mera bachppan
mere pas fir lautne lagga hai
mere mohalle me bachon ka vacation shuru ho chukka hai.............
Khushiyon ka ana
Fir se shuru ho chukka hai
Yun to yahan
Garmi badi hai
Sharbaton ke dariya..
Behna shuru ho chukka hai
Kai dino se suna suna tha
Jo Mera angan…
Ab chachahane laga hai
Dhool padi thi jin khilono pe
Who bhi ab chamakne lagay hai
Koi roothne me
To koi manane me lagga hai
Kabhi koi ankh pe bandhe patti
To koi bichata shatranj ki bisat
Aur kahin lagi hai sanp aur seedhi
Kahin par kanche bikhare hai
To kahin gilli dande…
Gend kahin aur balla kahin…
Jo khud abhi gudiyan hai
Rachane challi gudde-guddi ki shadi
Gudiya ki maiya kab se…..
dahej sajane me laggi hai
Aur haye re gudde ke amma…
Bas munh fulane me
Aur bechare nanhe barati
bar bar sar se bhari apni
pagdi sambhlne me lagay hai
umr se pehle jo badha tha
meri ore budhapa
in nanhe farishton ko dekh….
ab apna saman bandhne lagga hai
dheere dheere mera bachppan
mere pas fir lautne lagga hai
mere mohalle me bachon ka vacation shuru ho chukka hai.............
मेरी चिठ्ठी माँ के नाम
माँ मै हर साल इस दिन तुम्हारे साथ होती हूँ
पर माफ़ करना इस बार न हो पाऊँगी
जानती हूँ ..थोडा नाराज़ तुम मुझसे जरुर हो
अब मै भी एक माँ हूँ
इस दुनिया में
अपने बच्चे की ख़ुशी के अलावा
कुछ ना सोचना
यह मैंने तुमसे ही तो सीखा है
और
ज़िन्दगी में जो कुछ मैंने तुमसे सीखा है
एक पीढ़ी आगे बढाया है
एक पीढ़ी आगे बढाया है
यह समझ ले आज तेरे नाती की नहीं
तेरी बेटी की भी परीक्षा है
जिस डाल को
अपने आसूं देके सींचा है तुमने
उसपे अब फल लगाने की तय्यारी है…….
बस थोड़े दिन की और इन्तेज़ारी है
तब तक तुम मेरी तस्वीर से काम चलाना
मैंने तो तुम्हारी तस्वीर
अपने दिल में सजा के रखी है
माँ…अब आगे न लिख पाऊँगी…
जानती हू…तुम मेरे शब्दों में
भी मेरे आँखों की नमी पढ़ लोगी
और तेरी आँखें नम हों
यह मुझे कभी पसंद नहीं…….
पर माफ़ करना इस बार न हो पाऊँगी
जानती हूँ ..थोडा नाराज़ तुम मुझसे जरुर हो
अब मै भी एक माँ हूँ
इस दुनिया में
अपने बच्चे की ख़ुशी के अलावा
कुछ ना सोचना
यह मैंने तुमसे ही तो सीखा है
और
ज़िन्दगी में जो कुछ मैंने तुमसे सीखा है
एक पीढ़ी आगे बढाया है
एक पीढ़ी आगे बढाया है
यह समझ ले आज तेरे नाती की नहीं
तेरी बेटी की भी परीक्षा है
जिस डाल को
अपने आसूं देके सींचा है तुमने
उसपे अब फल लगाने की तय्यारी है…….
बस थोड़े दिन की और इन्तेज़ारी है
तब तक तुम मेरी तस्वीर से काम चलाना
मैंने तो तुम्हारी तस्वीर
अपने दिल में सजा के रखी है
माँ…अब आगे न लिख पाऊँगी…
जानती हू…तुम मेरे शब्दों में
भी मेरे आँखों की नमी पढ़ लोगी
और तेरी आँखें नम हों
यह मुझे कभी पसंद नहीं…….
Monday, May 5, 2008
मील का पत्थर
मील का पत्थर
राह जो दिखाता था
दफ़न हो चुका
अब हर राह अँधेरी
और मंजिल बेपता सी लगती है
ज़िन्दगी है की
इन गहरे अंधेरों में भी रूकती नहीं
बस रुक रुक के चलती है
सुबह का इन्तेज़ार कोई क्या करे ?
और कैसे करे ????????
आँखें न पलक झपकती हैं
ना इनकी नदी थमती है
बस एकटक घूरती रहती है
शायद राह दिखाने वाले
अपने सितारे को खोजती रहती हैं
न जाने क्यूँ
पौ से पहले की कालिख इतनी क्यूँ खलती है.
लो..... कहीं दूर
आस का पंछी
फिर से अपने पंख फडफडा रहा है
कोयल अपने पहले बोल बोली है
सूरज ने भी धीरे- धीरे एक अंगडाई ली है
पहली किरण भी निकली घर से
और सीधे मेरी ओर बढ़ी है
जो राह मेरी रोशन कर रही
धीरे से यह भी बता रही
एक नया मील का पत्थर
बस कुछ दूर आगे किसी मोड़ पे
मुझे राह दिखाने खडा है...
राह जो दिखाता था
दफ़न हो चुका
अब हर राह अँधेरी
और मंजिल बेपता सी लगती है
ज़िन्दगी है की
इन गहरे अंधेरों में भी रूकती नहीं
बस रुक रुक के चलती है
सुबह का इन्तेज़ार कोई क्या करे ?
और कैसे करे ????????
आँखें न पलक झपकती हैं
ना इनकी नदी थमती है
बस एकटक घूरती रहती है
शायद राह दिखाने वाले
अपने सितारे को खोजती रहती हैं
न जाने क्यूँ
पौ से पहले की कालिख इतनी क्यूँ खलती है.
लो..... कहीं दूर
आस का पंछी
फिर से अपने पंख फडफडा रहा है
कोयल अपने पहले बोल बोली है
सूरज ने भी धीरे- धीरे एक अंगडाई ली है
पहली किरण भी निकली घर से
और सीधे मेरी ओर बढ़ी है
जो राह मेरी रोशन कर रही
धीरे से यह भी बता रही
एक नया मील का पत्थर
बस कुछ दूर आगे किसी मोड़ पे
मुझे राह दिखाने खडा है...
Wednesday, April 9, 2008
JISKA KAM USIKO SAJHE…..
Umr ke is chavaleesven (44th) padav me
Main fir se padh rahi hu
Na ramayan
Na gita
Na mahabharat
Na hi koi puran
Bas apne bachpan ki
ore thoda mud rahi hu
hanji..me bhi ‘C’ padh rahi hu
bas yun samjho
dheere dheere kisi
gehri khai ki taraf badh rahi hu
girungi nahi yeh bhi janti hu
kyunki kabhi jiski me teacher thi
wohi mera beta ab mera tutor hai,
mere liye to woh ek sharp shooter hai
jo har waqt
mere khali bheje pe
bandook leke khada rehta hai
aur is ‘C’ ka concept clear karne pe ada rehta hai
ab to buri tarah fansi hu
na nikal pati hu
na doob jati hu
aise dal dal me dhansi hu
janti hu isme se har hal me bahar ana hai
isliye hi to
apne dye kiye balon
ko fir se safed karne pa tuli hu
hmm..kanetkar ki book ka
kewal ek chapter padhne ke bad
jo aaj tak kisi ne shayad kiya hoga
woh karne chali hu
ji han…me apna
pehla ‘C’ Statement likhne baithi hu
maf karna Einsteinji..
aapke “E=mc2 wale formulae
ka sahi matlab aaj hi jana hai
aur isiko apne first ever
‘C’ statement ke liye chuna hai
E=m*c*C ; (E=mc2)
{E=enigma
m=microbiology
c=chetna
C=’C’}
Jate jate ek secret aur bata du
Mere sare software doston ko
Tumhare is ‘C’, ‘C+, ‘C++ se
To mera ‘Genetics” jyada asan tha
In ‘C’ variables ko samjne se
DNA, RNA ko samjhna kaii guna saral tha
Tumhare ‘Compiler’ se
To majboot DNA ka phosphate bond tha.
Neways…………………..
ab to lag raha hai
ek kahavat apne liye bol dalu
aur is lambe hote kavya ka ant kar dalu
“jiska kam usiko sajhe
Aur kare to thenga baje.”
Main fir se padh rahi hu
Na ramayan
Na gita
Na mahabharat
Na hi koi puran
Bas apne bachpan ki
ore thoda mud rahi hu
hanji..me bhi ‘C’ padh rahi hu
bas yun samjho
dheere dheere kisi
gehri khai ki taraf badh rahi hu
girungi nahi yeh bhi janti hu
kyunki kabhi jiski me teacher thi
wohi mera beta ab mera tutor hai,
mere liye to woh ek sharp shooter hai
jo har waqt
mere khali bheje pe
bandook leke khada rehta hai
aur is ‘C’ ka concept clear karne pe ada rehta hai
ab to buri tarah fansi hu
na nikal pati hu
na doob jati hu
aise dal dal me dhansi hu
janti hu isme se har hal me bahar ana hai
isliye hi to
apne dye kiye balon
ko fir se safed karne pa tuli hu
hmm..kanetkar ki book ka
kewal ek chapter padhne ke bad
jo aaj tak kisi ne shayad kiya hoga
woh karne chali hu
ji han…me apna
pehla ‘C’ Statement likhne baithi hu
maf karna Einsteinji..
aapke “E=mc2 wale formulae
ka sahi matlab aaj hi jana hai
aur isiko apne first ever
‘C’ statement ke liye chuna hai
E=m*c*C ; (E=mc2)
{E=enigma
m=microbiology
c=chetna
C=’C’}
Jate jate ek secret aur bata du
Mere sare software doston ko
Tumhare is ‘C’, ‘C+, ‘C++ se
To mera ‘Genetics” jyada asan tha
In ‘C’ variables ko samjne se
DNA, RNA ko samjhna kaii guna saral tha
Tumhare ‘Compiler’ se
To majboot DNA ka phosphate bond tha.
Neways…………………..
ab to lag raha hai
ek kahavat apne liye bol dalu
aur is lambe hote kavya ka ant kar dalu
“jiska kam usiko sajhe
Aur kare to thenga baje.”
Thursday, April 3, 2008
AB KE JAB MILO ISHWAR.....
Ab ke jab miloge ishwar
Tumse poochugi chand sawal,
Kyun hamein dee yeh nahni ankhen
Aur inme sapne sajaye vishal
Rahein kathin manzil de dee door
Aur chote chote diye paer..
yun jimmedariyon ka bhoj kya kam tha
Jo hath me kalam aur pakda dee
Dil pe saanso ka bhojh kya kam tha
Jo armano ki jhadi bhi laga dee
Hey bhagwn…ab to na dil behlta hai
Na hi iske arman niklte hai
Ankhein hai ki ab bhi har pal
Naye sapne sanjoti hai…
Bas hath hai jo kalam
Liye kuch panno pe chalte hai
Yunhi din rat ab dhalte hai
Shayad nazar nahi dale zameen per
Kai dino se hey data
Teri duniya me
Aajkal kaee log jeete nahi
Bas jivan ko yunhi chalte hain
Ab ke agar
Zameen per aao to
Poori tayyari ke sath ana
Aur nahi to
Mere sawalon ko bhed sake
Aise hathiyar jarur lana
Warna padega pachtana….
Warna padega pachtana…
Tumse poochugi chand sawal,
Kyun hamein dee yeh nahni ankhen
Aur inme sapne sajaye vishal
Rahein kathin manzil de dee door
Aur chote chote diye paer..
yun jimmedariyon ka bhoj kya kam tha
Jo hath me kalam aur pakda dee
Dil pe saanso ka bhojh kya kam tha
Jo armano ki jhadi bhi laga dee
Hey bhagwn…ab to na dil behlta hai
Na hi iske arman niklte hai
Ankhein hai ki ab bhi har pal
Naye sapne sanjoti hai…
Bas hath hai jo kalam
Liye kuch panno pe chalte hai
Yunhi din rat ab dhalte hai
Shayad nazar nahi dale zameen per
Kai dino se hey data
Teri duniya me
Aajkal kaee log jeete nahi
Bas jivan ko yunhi chalte hain
Ab ke agar
Zameen per aao to
Poori tayyari ke sath ana
Aur nahi to
Mere sawalon ko bhed sake
Aise hathiyar jarur lana
Warna padega pachtana….
Warna padega pachtana…
tum aprichit
Aprichit the
Aprichit hi raho
Yun bar bar yadon me ake
Khud ko bevajha dohraya na karo…
Vihval vyakul man mera
Mrag-trishna sa bekal man mera
Badi yatan se shant hua hai
Isse fir se jwalamukhi mat banao
Badi jatan se sookhi hai mere ankh ki nadi
Use fir se bahne pe majboor na karo
Yeh katil hawa bhawander bane
Aur ujad de ghar mera
Isse pehle iska rukh mod liya karo
Kho kar tume pehle hi lut chuke hai
Apne aanso-on se sare sagar dubo chuke hai
Dil ki banajar zameen bhi na doob jaye kahin
Tum yadon ke yeh badal kahin aur barsaya karo……….
Aprichit hi raho
Yun bar bar yadon me ake
Khud ko bevajha dohraya na karo…
Vihval vyakul man mera
Mrag-trishna sa bekal man mera
Badi yatan se shant hua hai
Isse fir se jwalamukhi mat banao
Badi jatan se sookhi hai mere ankh ki nadi
Use fir se bahne pe majboor na karo
Yeh katil hawa bhawander bane
Aur ujad de ghar mera
Isse pehle iska rukh mod liya karo
Kho kar tume pehle hi lut chuke hai
Apne aanso-on se sare sagar dubo chuke hai
Dil ki banajar zameen bhi na doob jaye kahin
Tum yadon ke yeh badal kahin aur barsaya karo……….
Monday, March 31, 2008
dadi tum sahi thi.
Yaad hai dadi
Bachpan me apne nakhun
Par safed chitte dikhakar
Maine tumse poocha tha…
“yeh kya hain aur kyun hain?”
Tab, tumne bade pyar se
Mujhe apne god me bitha kar
Aur mere nanhe komal hathon ko
Apne hathon me lekar kaha tha,
“ yeh sab tumhare dost hai…”
Tab hamari batein sun kar
Papa badi jor se hanse the
Aur ma ne to anayas hi pooch bhi liya
“dost kya nakhuno pe chitte ban kar ugte hai
Aur badhte nakhuno ke katne par kat-te hain?”
Aur tab tum vishwas se boli thi “han”…
Shayad tab ki kahi teri bat
hi sahi thi dadi…….
Kyunki mere nakhun per fir ek chitta
Katne ki or bada hai………
Kash… tum aaj bhi mere sath hoti..dadi
To yeh bhi bata deti….
“Inhe fir se kaise ugaya jata hai?”
Bachpan me apne nakhun
Par safed chitte dikhakar
Maine tumse poocha tha…
“yeh kya hain aur kyun hain?”
Tab, tumne bade pyar se
Mujhe apne god me bitha kar
Aur mere nanhe komal hathon ko
Apne hathon me lekar kaha tha,
“ yeh sab tumhare dost hai…”
Tab hamari batein sun kar
Papa badi jor se hanse the
Aur ma ne to anayas hi pooch bhi liya
“dost kya nakhuno pe chitte ban kar ugte hai
Aur badhte nakhuno ke katne par kat-te hain?”
Aur tab tum vishwas se boli thi “han”…
Shayad tab ki kahi teri bat
hi sahi thi dadi…….
Kyunki mere nakhun per fir ek chitta
Katne ki or bada hai………
Kash… tum aaj bhi mere sath hoti..dadi
To yeh bhi bata deti….
“Inhe fir se kaise ugaya jata hai?”
Sunday, February 24, 2008
pukar
teri yad ki har cheez ko
yun to hamne dubo diya
par na jane kaise ek beej
dil ki zameen mein bo diya
anjane me seenchte rahe use
apne aansoon-o se
vo nanha paudha
hamse ukhade na bana
ab to yeh hal hai ki
vishal ho chala uska tana
sun lo...................
us par ab tumari adaon ke fool khile hain
kuch fal bhi lagay hai
jo khud me teri yadon ke hazaro beej samete hai
aaj ek fal sukh kar
fir se dil ki zameen par gira hai
aur uska har beej
ped banne par ada hai
unki jadein mere bhitar
gehri aur gehri ho rahi
pal pal is dil ki zameen ko kured rahi
ab inhe jangal ban-ne se kaise roku??
apne bhitar mache
is dangal ko kaise jeetu??
kuch javab hai to
de jao.........
varna dil ke is hisse ko
aakar sath apne le jao.............
yun to hamne dubo diya
par na jane kaise ek beej
dil ki zameen mein bo diya
anjane me seenchte rahe use
apne aansoon-o se
vo nanha paudha
hamse ukhade na bana
ab to yeh hal hai ki
vishal ho chala uska tana
sun lo...................
us par ab tumari adaon ke fool khile hain
kuch fal bhi lagay hai
jo khud me teri yadon ke hazaro beej samete hai
aaj ek fal sukh kar
fir se dil ki zameen par gira hai
aur uska har beej
ped banne par ada hai
unki jadein mere bhitar
gehri aur gehri ho rahi
pal pal is dil ki zameen ko kured rahi
ab inhe jangal ban-ne se kaise roku??
apne bhitar mache
is dangal ko kaise jeetu??
kuch javab hai to
de jao.........
varna dil ke is hisse ko
aakar sath apne le jao.............
Thursday, February 7, 2008
mujhe kehne do
tadpti kalam ka lava aaj behne do
machalte toofano ko aaj kagaj pe dhehne do
bahut chali andhiyan ret ki sehra me
marusthal yahan bhi kuch ban-ne do
mujhe kuch kehna hai kehne do
iske pehle ke sukh jaye yeh nadi
thoda door aur ise behne do
samundra ki kharash bhari jo armano me hai
use kuch to lafjhon me dhalne do
mujhe kuch kehna hai kehne do
sard syah ki kuch kalikh
kore panno pe failne do
oas ki boond bane mere ansoon ko
kuch der yunhi rehne do
mujhe kuch kehna hai kehne do...
machalte toofano ko aaj kagaj pe dhehne do
bahut chali andhiyan ret ki sehra me
marusthal yahan bhi kuch ban-ne do
mujhe kuch kehna hai kehne do
iske pehle ke sukh jaye yeh nadi
thoda door aur ise behne do
samundra ki kharash bhari jo armano me hai
use kuch to lafjhon me dhalne do
mujhe kuch kehna hai kehne do
sard syah ki kuch kalikh
kore panno pe failne do
oas ki boond bane mere ansoon ko
kuch der yunhi rehne do
mujhe kuch kehna hai kehne do...
Wednesday, February 6, 2008
sawal-javab aur zindagi
ek sawal bhi tum zindagi
ek javab bhi tum
aur isi sawal javab ke beech ji rahe hai hum
jab jeena chahte hai ji bhar ke
beech rah ruth ruth jane ka irada kyun hai
aur jab marna chahte hai
beman hum pe apna bhoj lada kyun hai
dukhon ko tune apna sathi,
aur maut ko apni saheli banaya kyun hai
tere dard ki jo dava bane
un lamhon ko bhulaya kyun hai
jiteji ai zindagi khud ko
chita pe sajaya kyun hai
javab tumhen ate hai mere har sawal ke
magar mujhse chupaya kyun hai
aaj fir se mujhe sawalon ke ghere me
aur khud ko javabon ke pehre me rakha kyun hai
tere in sawal aur javabon se thak chuke hai
fir bhi na jane kyun inhi ke beech ji rahe hai...
bas jiye ja rahe hai...
ek sawal bhi tum ek javab bhi tum
aur isi sawal javab ke beech ji rahe hai hum...
ek javab bhi tum
aur isi sawal javab ke beech ji rahe hai hum
jab jeena chahte hai ji bhar ke
beech rah ruth ruth jane ka irada kyun hai
aur jab marna chahte hai
beman hum pe apna bhoj lada kyun hai
dukhon ko tune apna sathi,
aur maut ko apni saheli banaya kyun hai
tere dard ki jo dava bane
un lamhon ko bhulaya kyun hai
jiteji ai zindagi khud ko
chita pe sajaya kyun hai
javab tumhen ate hai mere har sawal ke
magar mujhse chupaya kyun hai
aaj fir se mujhe sawalon ke ghere me
aur khud ko javabon ke pehre me rakha kyun hai
tere in sawal aur javabon se thak chuke hai
fir bhi na jane kyun inhi ke beech ji rahe hai...
bas jiye ja rahe hai...
ek sawal bhi tum ek javab bhi tum
aur isi sawal javab ke beech ji rahe hai hum...
Wednesday, January 23, 2008
kal...aaj...kal
bandhi kyun itihas se
bhavishya ki dor hai,
takatvar insaan ka
aaj kyun kamjor hai..
kal ki khushi me
kal bejar tha..
aaj bhi bekrar hai...
insan ki zindagi se yeh kaisi takrar hai...
bejan jismon ka mela yeh jahan
li khushiyon ne kabrstano me panah
gam ke parvat..ashkon ki nadiyan
na jane jivan chala kis oar hai...
bandhi kyun itihas se...
bhavishya ki dor hai....
bhavishya ki dor hai,
takatvar insaan ka
aaj kyun kamjor hai..
kal ki khushi me
kal bejar tha..
aaj bhi bekrar hai...
insan ki zindagi se yeh kaisi takrar hai...
bejan jismon ka mela yeh jahan
li khushiyon ne kabrstano me panah
gam ke parvat..ashkon ki nadiyan
na jane jivan chala kis oar hai...
bandhi kyun itihas se...
bhavishya ki dor hai....
Sunday, January 20, 2008
Thursday, January 17, 2008
vishwas
AB HAAR SE KOI SHIKWA NAHI MUJHKO,
KYUNKI HAR HAAR MERI
MUJHE JEET KA VISHWAS DILATI HAI.
AB BHAY NAHI LAGTA ANDHERON SE MUJHKO
KYUNKI YEH ANDHERE RAT KE
MUJHE SUBAH HONE KA VISHWAS DILATE HAI
AB NA GHUMAN HOTA HAIGUMNAM RAHON PE MUJHKO
KYUNKI GUMNAM RAHEIN YEH,
MUJHE MERI MANZIL PANE KA VISHWAS DILATI HAI
AB HAAR SE KOI SHIKWA NAHI MUJHKO
KYUNKI HAR HAAR MERI,
MUJHE JEET KA VISHWAS DILATI HAI....
KYUNKI HAR HAAR MERI
MUJHE JEET KA VISHWAS DILATI HAI.
AB BHAY NAHI LAGTA ANDHERON SE MUJHKO
KYUNKI YEH ANDHERE RAT KE
MUJHE SUBAH HONE KA VISHWAS DILATE HAI
AB NA GHUMAN HOTA HAIGUMNAM RAHON PE MUJHKO
KYUNKI GUMNAM RAHEIN YEH,
MUJHE MERI MANZIL PANE KA VISHWAS DILATI HAI
AB HAAR SE KOI SHIKWA NAHI MUJHKO
KYUNKI HAR HAAR MERI,
MUJHE JEET KA VISHWAS DILATI HAI....
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