Wednesday, June 25, 2008

गरूर एक यह भी

रात भर चाँद पिघलता रहा
हम बूँद बूँद चान्दिनी
अपने चांदी की परात में
इकठा करते रहे
अपनी सर्द आहों की देकर हवा
उसे परत भर परत जमाते रहे
जब चाँद पूरी तरह जम गया
तब फिर से उसे
….अपने प्यार के धागों
से खेंच कर फलक पर लटकाया
और घूरते रहे …अपनी कोशिश पे गरूर खाते रहे

1 comment:

  1. bhut sundar bhav v bhut sundar rachana.likhate rhe.
    aap apna word verification hata le taki humko tipani dene mei aasani ho.

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