Monday, April 1, 2013

गुमान और गर्व

सजी संवरी एक्सप्रेस वे
देख खुद को इतराए
कभी देखे अपने divider को
तो कभी बीच में लगे फूलो
के पौधों पे इठलाये
और आस पास लहराते खेतो
को देख देख मुस्काए
अपनी काली सड़क पर
सफ़ेद लकीर से नजर कटवाए
और जब भी आस पास कोई
 नन्ही सी पगडण्डी देख
अभिमान से उस पे गुर्राए
देख तू कितनी टेढ़ी मेढ़ी
और मैं सीधी  सपाट दौड़ती जाऊ
तू सुस्त में सरपट तेज़ी लाकर
मुसाफिरों  झटपट मंजिल तक पहुंचाऊ
पगडण्डी धीरे से मुड के बोली
बहना तुम्हे देख तू ही नहीं मुझे
भी तुझ पे गर्व होता है
पर ये देख के दिल मेरा  तेरे लिए रोता है
मैं आज भी कुचली जाती इन्सान या जानवर के पैरों  से
और तू सरपट दौड़ती पहियों से .....................