Saturday, July 19, 2008

ये कैसी मजबूरी

बंजर दिलों की ज़मीन
बीज ज़िन्दगी के सूखे
चुलू भर लहू सीने में
लाखों साँसों के कैसे सींचू????
हर दिल में आग नफरत की
हर घर में हिंसा की होली
दो नन्हे नयनो के नीर से
यह दहकते शोले कैसे भुजाऊँ????
प्रेम की हर माला टूटी है
मोती बिखरे हैं
कब्रस्तानो और शमशानों में
जो जोड़ सके फिर से ताने बाने
वो धागे प्रेम के कहाँ से लाऊ ????
पत्थर ही पत्थर फैले है
जीवन के हर एक कोने में
एक अकेली ……चेतना..
किस किस में जान डालू?????????

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