Thursday, July 10, 2008

मेरी वसीयत …

जब तुम मेरा ये काव्य पढोगे
तुम्हें कहीं विरह के
तो कहीं मिलन पल मिलेंगे
कहीं निराशा
तो कहीं आशा के कल मिलेंगे
आंसू की नदियाँ
कहीं तो ख़ुशी के समुन्दर मिलेंगे
बचप्पन की मासूमी
तो कहीं जवानी की नादानी
और
कहीं ढलती उम्र के सयानेपन मिलेंगे
ज़िन्दगी की पल पल से लडाई
तो कहीं उस -से किये बेमन समझौते मिलेंगे
कहीं शक की आंधी तो
कहीं चातक सा विश्वास मिलेगा
बस यूँ समझ लो
मेरे इन्द्रधनुषी जीवन का
’हर रंग इन पन्नो में मिलेगा
और
अंत में शायद कुछ पन्ने कोरे भी मिलेंगे
तब यह समझ लेना
इस कलम की स्याही सुख चली
तब तुम उन खाली पन्नो में
अपनी कलम से कुछ रंग भर देना
यूँ तो मेरा सारा काव्य तुम्हारे नाम है
बस ये कुछ पन्ने नाम मेरे कर देना …

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