Tuesday, July 8, 2008

टूटी ग़ज़ल.....

बड़े नाजों से पाला था
शीशे सा संभाला था
जिसे वो ग़ज़ल ……………….
.कल मेरे हाथों से छुट गयी
और हजारों टुकडों में टूट गयी
अब हर तरफ मेरे बस लफ्ज़ ही लफ्ज़ बिखरे हैं …..
जो कभी मुझे सुकून देते थे
आज वो टूटे कांच से चुभते हैं …..
ऐ ग़ज़लों वाली लड़की सुन
थोडी आंच देकर
इन कांच के लफ्जों को पिघला दो
और
तुम ग़ज़लों वाले लड़के (खुदा )
इन पिघले लफ्जों को
नए सांचे में डाल
मेरी टूटी ग़ज़ल को नया रूप दे दो ….

2 comments:

  1. bahut sunder hai...
    jari rahe...

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  2. maf kiziyegaa aap ne apne profile main apna email id nahin diya apse sampark kaise hoga...
    hame apki kalam ki tarif karni thi..
    apki kalam ki syahi main bahut prem or drd hai...
    takat bhi hai..
    apki lagbhag sabhi post pade bahut ache hain likhte rahen....
    or ye verification hata de, comments likhne main asani hogi...

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