हाथों में मेहँदी
मांग भरा सिन्दूर
सुर्ख लाल जोड़े में सजा तन
नख से शिख तक
सजी दुल्हन
न दिल बेकरार
न आंख में नमी
न शरमाई
न संकुचाई
न हवा में उड़ता घुंघट संभालती
ये आज की कैसी दुल्हन
न मुड कर देखा बाबुल
न सहेलियों के गले लगी
न माँ से लिपटकर रोई
वो तो बस
चुपचाप
चेहरे पे असीम शांति ओढे
……
……
……
……
…...
……
……
अर्थी पे चिर -निंद्रा में चली
ये तेरी कैसी विदाई दुल्हन …??????
Sunday, May 31, 2009
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