Sunday, May 17, 2009

आपस की बात

आपस की बात है
बंद ज़ुबानो में कहो
...................
बात निकलेगी तो
बहुत दूर तलक जायेगी
परत दर परत
हर मुर्दा अफसाने की
कब्र खुल जायेगी
बाहर जो आये ये मुर्दे तो
इनके बढ़ते नाखुनो से
हर राज़ की खाल छिल जायेगी
और नंगी सचाई
खुद को कहीं
छुपा भी न पायेगी
वक़्त रहते चलो संभल जाते है
और इन कब्रों पर
थोडी ताजी माटी डालकर
इन मुर्दों के लिए एक
बार फिर फातेहा पढ़
एक दूजे से खुदा -हाफिज़ कर
अपनी अपनी चुनी राह पर
आगे बढ़ते हैं

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