दो लफ्ज़ तेरे होंगे
दो मेरे
तीर बन दोनों के सीने छलनी होंगे
कुछ लहू तेरा बहेगा
बहुत कुछ मेरा
घायल दोनों होंगे
तुझे घायल देख सकूँ
ऐसी मुझ में ताकत नहीं
इसलिए तेरे तीर चुप चाप
सीने पर ले कर छलनी
कर दिया खुद को
न आने दी एक उफ़ होठो पर
या एक आंसू आँखों में
अनजान नहीं हम भी तेरी फितरत से
आज में ज़ख़्मी हूँ जो जिस्म से
कल तेरी रूह ज़ख़्मी होगी
और मेरे आँखों के समंदर
तेरी ही आँखों से बहेंगे
तब इन्ही तीरों से
सीने को और कुरेद कर
हम उन नमकीन मोतियों को
अपने सीने में पनाह देंगे...
Monday, March 21, 2011
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