रात भी जब सन्नाटे के खर्राटे
मार चैन कि नींद सो रही थी
ऐसी सर्द रातों में
दबे पाँव तुम क्यूँ चले आते जारी
और आते ही मेरी शांत सी
दिल कि ज़मीन पे भूचाल ला देते हो
कुछ साँसे यहाँ कुछ वहां
गिरा कर मुझे बेकाबू कर देते हो
देखो इतना न झ्क्ड़ो
की मेरा दम निकल जाये
थोडा खुद को भी संभालो
और मुझे भी थोडा संभलने दो
बहुत हुआ अब
इससे पहले की कोई और जग जाये
यहाँ से चुपके से निकल जाओ
ओहोहो...
आप सब पढने वाले क्या समझे..
अरे रे रे
इनसे मेरा इश्क पुराना है
मैं इनकी परमानेंट पेशेंट
और ये मेरे आशिक दमा (अस्थमा) है
Saturday, March 13, 2010
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