सदियों पहले चेतना
जब समुन्दर की नील
की तरह अपने पानी में
सोती थी
और खुद में जीती
खुद में मरती थी
चाँद हर अमावस
अँधेरे ओढे
उसके पास
जहाँ से नज़रे बचाकर आता था
कुछ अपनी सुनाता
कुछ उसकी सुनता था
फिर सुबह होने पर
बिछड़ने की घडी में
दोनों गले मिल खूब रोते
नील की चेतना
के आंसू समुन्दर में घुल जाते
और चाँद के बर्फ बन
पहाडो पे छ जाते
बस तब से समुन्दर खरा सा है
और पहाड़ कुछ सफ़ेद से.....
Friday, June 19, 2009
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woh jab milenege to sab normal ho jayega ??
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