जिन्हें हीरे समझ संजोया था
वो रिश्ते पत्थर निकले
इंसान तो इंसान
वो हैवानो से बदतर निकले
रूह पे जो दिख रहे नील मेरी
वो घाव उनकी चाबुकों से निकले
अब तेरे दर पे बन दीवार खड़े है
या खुदाया.
कि हर आह का असर
हम खुद पे झेल ले
जो भी इस कराहती रूह से निकले
चाहे सहते सहते...
मेरा दम भी क्यों न निकले
Sunday, November 1, 2009
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