जब मौत की दस्तक मेरे दरवाज़े होगी
जींदगी के लिए क़यामत
मेरे लीए खुदा की नेमत होगी
...क्यूँ की उस दीन मेरी उस खुदा से मुलाक़ात होगी ...
सुना है ...
तब खुदा हर बंदे से एक सवाल पूछता है .........
" मेरी दी जींदगी कैसे बीतायी "
सोच रहे हम तब उसे कयाँ जवाब देंगे
जींदगी का कोई लेखा तो रखा नही
खुदा को क्या हिसाब देंगे
...बस येही कहेंगे ....
" जीमेदारी की सेज पे
सलवटों में लिपटी मिली थी
जींदगी .....................
इस की सतहें सीधी
करने में हमने सारी उम्र खर्च कर दी ..."
Saturday, February 14, 2009
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