Friday, November 28, 2008

वो अनाथ आँखें

रात के अंधेरों
में उज्जालो के ख्वाब बुनती हैं
अमावास कि स्याही में
दीवाली ढूंढती हैं

..........ना चीनी है
ना आटा है
ना ही घी है कहीं
खाली पड़े मर्तबानो मेंहलवे पूरी का स्वाद ढूंढती हैं

........ना बाप है
ना भाई है
ना ही कोई दोस्त
दिलों को मीठी बातों से छूकर
परायों में अपनों का अहसास ढूंढती हें

ग़मों सी पतझड़ ज़िन्दगी से
यह नादाँ
रौशनी से अनाथ आंखें
हर पल खुशियों की बगिया ढूढती हैं...


1 comment:

  1. ग़मों सी पतझड़ ज़िन्दगी से
    यह नादाँ
    रौशनी से अनाथ आंखें
    हर पल खुशियों की बगिया ढूढती हैं...

    अच्छा लिखा , धन्यवाद .
    वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेते तो सुविधा होती.

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