सजी संवरी एक्सप्रेस वे
देख खुद को इतराए
कभी देखे अपने divider को
तो कभी बीच में लगे फूलो
के पौधों पे इठलाये
और आस पास लहराते खेतो
को देख देख मुस्काए
अपनी काली सड़क पर
सफ़ेद लकीर से नजर कटवाए
और जब भी आस पास कोई
नन्ही सी पगडण्डी देख
अभिमान से उस पे गुर्राए
देख तू कितनी टेढ़ी मेढ़ी
और मैं सीधी सपाट दौड़ती जाऊ
तू सुस्त में सरपट तेज़ी लाकर
मुसाफिरों झटपट मंजिल तक पहुंचाऊ
पगडण्डी धीरे से मुड के बोली
बहना तुम्हे देख तू ही नहीं मुझे
भी तुझ पे गर्व होता है
पर ये देख के दिल मेरा तेरे लिए रोता है
मैं आज भी कुचली जाती इन्सान या जानवर के पैरों से
और तू सरपट दौड़ती पहियों से .....................
देख खुद को इतराए
कभी देखे अपने divider को
तो कभी बीच में लगे फूलो
के पौधों पे इठलाये
और आस पास लहराते खेतो
को देख देख मुस्काए
अपनी काली सड़क पर
सफ़ेद लकीर से नजर कटवाए
और जब भी आस पास कोई
नन्ही सी पगडण्डी देख
अभिमान से उस पे गुर्राए
देख तू कितनी टेढ़ी मेढ़ी
और मैं सीधी सपाट दौड़ती जाऊ
तू सुस्त में सरपट तेज़ी लाकर
मुसाफिरों झटपट मंजिल तक पहुंचाऊ
पगडण्डी धीरे से मुड के बोली
बहना तुम्हे देख तू ही नहीं मुझे
भी तुझ पे गर्व होता है
पर ये देख के दिल मेरा तेरे लिए रोता है
मैं आज भी कुचली जाती इन्सान या जानवर के पैरों से
और तू सरपट दौड़ती पहियों से .....................