Saturday, December 11, 2010

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दिल के कसी छेद से

रुक रुक कर रिसती हैं

कुछ बीते पलों की यादें

कुछ वो ज़ख्म

जो वक़्त की मरहम

दे जाती है

कुछ ऐसे भ्रम

जो हमारी उमीदे

हम में भर जाती है.


भूल जाना चाहते है.

जिन्हें हम सदियों पहले

पर कम्भख्त भुलाये नहीं भूलते.

सच है अंधेरो में बुने ख्वाब

दिनों में नहीं पलते

बिखर जाते हैं

टूटे कांच की तरह

और बार बार लौटकर

आँखों में चुभ जाते हैं

छलना

सर्दियों की नर्म धूप अभी

पक के जमी नहीं

और तू है के

अभी से अलावे

लगा के बैठी है

दुनिया समझती है

तुझसे बदलते

मौसम का मिजाज़

सहन नहीं होता शायद

पर हम जानते हैं

तू इस अलावे की आग में

अपने जीवन के राग को

जलाकर खाक करना चाहती है

और अपने अश्को को

आग की दें समझकर

खुद को भी छलना चाहती है

कतरने ज़िन्दगी

कतरने ज़िन्दगी की

जमा करके बैठे हैं

कभी सिल लेते हैं

साँसों की तार से

कभी जोड़ लेते हैं

आंसूओ की धार से

पार कर लेते हैं

हर मंजिल कभी जीत के

कभी हार की मार से

न रुके थे

न रुकेंगे ये कदम

एक बार और चल पड़े

फिर से हम तलवार की धार पे

वोह लम्हे

उम्र की कैद में दफ़न

रखी एक मेज है

जिसकी दराजो

में छुपी

कुछ यादे है

ये दिल आज

फिर से उन दराजो

को खोलने की जिद्द कर बैठा

यादो की दरारों से

झांक कर

फिर से जीने की उम्मीद कर बैठा..


कंप-कांपते हुए हाथों से

दिल में दहकते शोलो से

मन के उन पुराने साजों से

थोड़ी हिम्मत मैंने जुटाई है ..

उन यादों से फिर आखें भर आई हैं ..

उस मेज की दराजो में

वोह लम्हे आज भी वैसे ही रखे हैं ...

कुछ मीठे कुछ नमकीन ,

कुछ ग़मगीन , कुछ रंगीन ...

वोह पल

मैंने आज फिर जी के देखे हैं .......

नाउम्मीदी

दिल के बयाबनो

तहखानो में

बेड़ियों से बाँध रखा था

जिन नाउम्मीदों को

न जाने किस छेद से

उम्मीद की किरण

उन तक पहुँच गयी

के मेरी नाउम्मीदी

फिर से गहरी नींद

से जग कर मेरे

सामने आ खडी हो गयी...


रुक जा वक़्त फिर से

मुड़ जा और ले चल

मुझे फिर उन्ही

बयाबानो में

जहाँ से ये लौटके आई हैं

और मेरा आत्मविश्वास

डगमगाई हैं

चल कर इन्हें

फिर वहीँ क़ैद कर आयें

और उस छेद में

भर माटी उसे भी बंद कर आये

सरिता...my friend

कुछ मीठी कुछ तीखी
हमारी सासु...सरिता जी

बहु की हर करनी
पर नज़रे जमाये रहती हैं
ससुरजी को बेहद प्यारी
हमारी सासु ...सरिता जी

स्वेता की सहेली
बातो में जिसकी एक पहेली
कुछ सुलझी कुछ उलझी
ऐसी हमारी सासु....सरिता जी

प्रेरणा की दी प्यारी
रूचि की बहना न्यारी
बहनों के लिए
बहु से करती तू तू में में
ऐसी हमारी...सासु...सरिता जी...


बोर्ड पे सबकी खेंचे
रहती हैं टांग सदा
ऐसी नटखट
हमारी सौस...सरिता जी


दिल पे न लगाना
एक चुटकी ली है
छोटी सी
सरिता...मेरी प्यारी सासु जी...

तकदीर

कुछ लिख के मिटा दिया

ज़िन्दगी ने मेरी तकदीर से

कुछ मिटा के लिख दिया

फिर से हाथ की लकीरों में


एक कतरा आंसू

था शायद

जो समन्दर बन

बहा आँखों से



मेरे सपनो का एक

सुन्दर जहाँ डूबा जिसमे

पर

मैं न डूबी न ही तर कर

पार हुई जिससे



बस भवन्डर में

टूटी नाव सी

गोते ही खाती रही....