Wednesday, June 25, 2008

गरूर एक यह भी

रात भर चाँद पिघलता रहा
हम बूँद बूँद चान्दिनी
अपने चांदी की परात में
इकठा करते रहे
अपनी सर्द आहों की देकर हवा
उसे परत भर परत जमाते रहे
जब चाँद पूरी तरह जम गया
तब फिर से उसे
….अपने प्यार के धागों
से खेंच कर फलक पर लटकाया
और घूरते रहे …अपनी कोशिश पे गरूर खाते रहे

Wednesday, June 4, 2008

यादों के हीरे

कभी था जो महल
मेरा वो आलीशान दिल
अब खंडहर बन चुका
प्यार के पन्ने
मोहब्बत के मोती
जिसे जो मिला लूट चुका ….
बस तेरी याद के कुछ हीरे
बचे है
जो एक तहखाने में
बड़ी हिफाज्जत से
सम्भाल्के हमने रखे हैं ….
वादा है ये तुमसे
इन्हें लुटने न देंगे…...
दीवारें डेह भी जाये तो क्या
इस दिल के दरवाज़े
अब किसी के लिए न खुलेंगे …………